Friday, September 7, 2018

जिनागम पंथ जयवंत हो जय

    दबंग रिपोर्टर*रन्‍जीत पुरी गोस्वामी
जिनागम पंथ जयवंत हो जय
जल की बूँद मोती की शोभा पा जाती है- आर्यिका श्री विद्यान्तश्री माताजी
   हे स्वामिन्! ऐसा मान कर मंदबुद्धि होने पर भी मेरे द्वारा यह आपका स्तवन प्रारंभ किया जा रहा है। जो आपके प्रभाव से सज्जन पुरुषों के चित्त को उसी प्रकार हरण करेगाजिस प्रकार निश्चय से जल की बूँद कमलिनी के पत्तों पर मोती की कांति को प्राप्त होती हैं। 
    ऐसा विमर्श भक्त नगरीलखनादौन में पपू भावलिंगी संत की शिष्या जिन धर्म प्रभाविका आर्यिकाश्री 105विद्यान्तश्री माताजी ने श्री भक्तामर स्तोत्र जी के 8वें काव्य में आचार्य भगवन मानतुंग स्वामी की भक्ति की महिमा गाते हुए बताया।
     आचार्य मानतुंग ने आदिनाथ भगवान की भक्ति कभी की होगी लेकिन उनके काव्य के शब्दों की कांति तो आज भी वैसी ही है। अंधकार समाप्त करना है तो प्रकाश की ओर आगे बढ़ना होता है निमित्त कुछ नहीं करता ऐसी गलत धारणा कभी अपने अन्तःकरण में मत डाल लेना।आर्यिका श्री की मंगल वाणी प्रवाहित हो रही थी,हुआ क्याइतने में लाइट चली गईमाइक बंद हो गया।आर्यिका श्री बोली देखो! निमित्त के बिना कार्य सफल नहीं होता।मेरी आवाज सभी तक पहुँच सके इसके लिए यह माइक निमित्त है। हम भक्ति का प्रभावगुरू कीजिनेन्द्र भगवान की वाणी को आप तक पहुँचाना चाहते हैं। उपादान शक्ति (मैं) मौजूद हूँ लेकिन अभी निमित्त कार्य रूप परिणत नहीं हो रहा है। इतने में एक दीदी उठी और दूसरा माइक लेकर आ गई।और  उनके आते ही बिजली का प्रकाश कौंद पड़ा।आर्यिका श्री बोल पड़ी- जब कार्य होना होता है तब निमित्त भी मिल जाते है।इसमें मेरा कोई प्रभाव नहीं है यह तो सब आपके पुण्य से हुआ है।जैसे आचार्य भगवन मानतुंग स्वामी आदि प्रभू से कहते हैं कि-मुझ अल्प बुद्धि के द्वारा किया हुआ आपका स्तवनगुणगान सज्जन पुरुषों के चित्त को हरण करेगा इसमें भी एक मात्र आपका प्रभाव है। सज्जन पुरुष तत्त्वों की गहराई में जाते है और उसी रूप हो जाते है। हम भी परमात्मा की भक्ति करके,गुरू भक्ति करके उनके समान बने।
 अगर सागर से दूर हो गए तब उसकी गहराई को कैसे जान पायेंगेइन्द्र धनुष के पास न आकर उसके रंगों को कैसे देख पायेंगे। तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमा कह रही हैं कि इतना निर्मल हो जाओ जिस प्रकार बच्चा रहता है। नग्न होने पर भी विकार नहीं होतासंतो की तरह निर्विकार बन जाओअहंकार नहीं आयेगा। लेकिन जैसे ही बच्चा बड़ा होता है विकार आने लगता है अपने तन को वस्त्रों से ढकने लगता है।कतिपय विद्वानों ने थोड़ा बहुत शास्त्रस्वाध्याय करके उसका अपना अर्थ निकाल कर अपना तर्क देना शुरू कर दिया हैअहंकारी बन गये हैं।सिंहासन कितना भी सुन्दररंग-बिरंगा हो अगर उस पर पवित्र आत्मा न बैठे तब तक उसकी सुन्दरता नहीं होती।उसी प्रकार पुरूषों की शोभा उसके रूप से नहीं उसके सम्यक् गुणो सेनिर्मल स्वभाव से है। यह काव्य भी सज्जनो के लिए हैदुर्जनो के लिए नही। व्यवहार भी निमित्त के सहारे से चलता है।हम साधु और आप श्रावक लखनादौन में भक्ति आराधना अपनी साधना कर रहे है तो निमित्त कौन है- प. पू. भावलिंगी संतश्रमणाचार्य गुरुदेव श्री १०८ विमर्शसागर जी महामुनिराज अगर निमित्त को छोड़ दिया तो मुँह बल गिरोगे। जल की बूँद मोती की शोभा पा जाती है कमल पत्तों का प्रभाव है। हमारा जीवन भी पानी की बूँद की तरह क्षण भंगुर है। पानी की बूँद में तब तक कोई सार नहीं जब तक उसे परमात्मासंतों के चरणों में अर्पित न किया जाए।एक धनपाल नाम का वैश्य था ।नाम तो धनपाल थाकिन्तु था फटेहाल। उसके वंश का कोई अंश भी नहीं  थादु:खी रहता था।एक दिन परोपकारीउदार चित्तनिष्पृहीसंत चन्द्रकीर्ति और महाकीर्ति नाम के दिगम्बर मुनिराज का आगमन हुआ।नेपाल भी मुनि दर्शनार्थ पहुँचा और विनय से मुनिराज को अपनी सारी कथा व्यथा सुना दी।विशेष ज्ञानी मुनिराज ने उनके अंतरंग को पढ़ लिया और श्री भक्तामर जी स्तोत्र के आठवें काव्य का ॠद्धि मंत्र के साथ विधि पूर्वक व्याख्यान किया जिससे नेपाल की आठवें  काव्य पर प्रगाढ़ श्रद्धा हो गई। काव्य है-
मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद-
मारभ्यते तनु-धियापि तव प्रभावात्।
चेतो करिष्यति सतां नलिनी-दलेषु,
मुक्ता-फल-द्युतिमुपैति ननूद - बिन्दु:।।8।।
 फलस्वरूप उसको धन और पुत्र दोनों की प्राप्ति हो गई। पुत्र के जन्म पर पिता वैरागी हो गया और  आगे जाकर पुत्र और माँ भी वैरागी हो गए। धर्म के फल से संसार के सुख के साथ-साथ परमार्थ का सुख भी प्राप्त होता है। अब वह धनपालधर्मपाल बन गया। आर्यिका श्री ने कहा कि- जो लोग भीतर से अमीर होते है वह दान धर्म करने में सबसे आगे रहते है यहां जितने भी है सब बड़े पुण्यात्मा है अंहकार से विरत होकर संत की शरण में बैठे हैं  अपना कल्याण कर रहे है।
 "तुम्हारे पास दौलत हैहमारे पास दौलत है।तुम्हारी छूट जाएगी,हमारी साथ जाएगी। अपनी योग्यता के अनुसार दान धर्म कर लो तो तुम्हारी दौलत भी तुम्हारे साथ जाएगी।

No comments:

Post a Comment